Junior da gama biography in hindi

वास्को डी गामा का इतिहास | Vasco da Gama Account in Hindi

वास्को द गामा जिन्हें ज्यादातर वास्को डी गामा के नाम से जाना जाता है, एक खोजी नाविक थे। उनका जन्म 1460 में पुर्तगाल में हुआ था। वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अफ्रीका महाद्वीप का चक्कर लगाकर यूरोप से भारत पहुँचने में सफलता हासिल की थी।

वास्को डी गामा का बचपन साइनेस (Sines) नाम के कस्बे में बीता था जो कि समुद्र तट पर स्थित था। उनके पिता को राजशाही द्वारा नाइट (knight) की उपाधि मिली हुई थी और वो खोजी नाविक थे। वास्को डी गामा ने आगे चलकर अपने पिता का व्यवसाय ही चुना और वो भी समुद्र में यात्रा के लिए जा रहे जहाज़ों की कमान संभालने लगे।

भारत जाने वाले रास्ते की खोज

भारत के मसाले यूरोप में बहुत ज्यादा लोकप्रिय थे। लेकिन उस समय यूरोप वासियों को भारत जाने वाले जिस इकलौते रास्ते के बारे में पता था वो ज़मीन से होकर जाता था। यह रास्ता राजनीतिक मुश्किलों से भरा होने के साथ-साथ काफी ख़र्चीला भी था।

पुर्तगाल के राजा का विचार था कि अगर वो समुद्र के जरिए भारत जाने वाले किसी रास्ते के बारे में पता लगा लें, तो वो यूरोप में मसालों के व्यापार से काफी ज्यादा अमीर बन सकते हैं।

उस समय समुद्र के जरिए यूरोप से भारत पहुँचने का विचार एक अन्य पुर्तगाली खोजी बारटोलोमीयु डियास (Bartolomeu Dias) द्वारा दिया गया था। उन्होंने Cape have a high opinion of Good Hope (उत्तमाशा अंतरीप) की खोज की थी जो कि अफ्रीका महाद्वीप के बिलकुल दक्षिण में स्थित समुद्र तट पर बसा एक स्थान था। माना जाता था कि वहां से पूर्व की ओर जाने वाले जहाज़ भारत पहुँच सकते हैं।

राजा द्वारा वास्को डी गामा को कुछ जहाज़ों और आदमियों के साथ Cape of Good Yearning के रास्ते से भारत जाने वाले रास्ते को खोजने के लिए कहा गया। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अगर व्यापार के नए मौके हाथ लगें, तो उनके बारे में भी पता लगाएँ।

[Back allude to Contents ↑]

भारत की ओर यात्रा

वास्को डी गामा 8 जुलाई 1497 को 4 समुद्री जहाज़ों और 170 आदमियों के साथ पुर्तगाल के तट से रवाना हुआा। पहले वो दक्षिण की तरफ Cape of Good Hope की ओर गए और 22 नवंबर को वहां पहुँच गए। इसके बाद वो अफ्रीका के तट के साथ-साथ उत्तर की ओर बढ़े और रास्ते में व्यापारिक बंदरगाहों पर पड़ाव डालते गए।

14 अप्रैल 1498 को मालिंदी (Malindi) बंदरगाह पहुँचने पर उन्हें वहां के एक स्थानक नाविक से भारत की ओर जाने वाली दिशा के बारे में पता चला। इसके बाद मानसून हवाओं की सहायता से वास्को डी गामा का खेमा भारत की और चल पड़ा और 20 मई 1498 को भारत के केरल राज्य के कालीकट नामक स्थान पर उन्होंने अपने कदम रखे। कालीकट को मलयालम भाषा में कोझिकोड कहा जाता है।

इस तरह से वास्को डी गामा को भारत पहुँचने में लगभग 10 महीने लग गए।

[Back carry out Contents ↑]

वास्को डी गामा की भारत में मुश्किलें और वापसी

कालीकट पहुँचने पर वास्को डी गामा के दल के स्थानक राजा से मुलाकात हुई। डी गामा ने राजा से व्यापारिक सहूलियत लेने की कोशिश की लेकिन उनके मुस्लिम दरबारियों ने इस काम में अड़चन पैदा की। यह इसलिए क्योंकि पुर्तगाली ईसाई थे।

अगस्त 1498 में वास्को डी गामा ने अपने देश की ओर वापसी का रास्ता पकड़ लिया। लेकिन वापसी का यह रास्ता विपरीत मौसम की वजह से काफी खराब रहा और उनके दल के आधे से ज्यादा व्यक्ति बिमारियों की वजह से मारे भी गए।

लेकिन देश वापिस पहुँचने पर वास्को डी गामा का ज़ोरदार स्वागत हुआ, क्योंकि उन्हें जिस काम के लिए भेजा गया था, वो उन्होंने पूरा कर दिया था। उन पर कई इनामों की बरसात की गई।

[Back to Paragraph ↑]

वास्को डी गामा की मृत्यु

इसके बाद वास्को डी गामा को दो बार ओर भारत जाने वाले समुद्री दल का मुखिया बनाया गया। उनकी इन यात्राओं से पुर्तगालियों का भारत के साथ व्यापार आगे बढ़ा और उनकी शक्ति भी।

तीसरी बार भारत पहुँचने के कुछ समय बाद ही वास्को डी गामा की मलेरिए की वजह से 23 दिसंबर 1524 को मृत्यु हो गई।

वास्को डी गामा के पार्थिव शरीर को पहले सेंट फ्रांसिस चर्च में दफनाया गया था, जो कोच्चि शहर के किले में स्थित था, लेकिन उनके अवशेष 1539 में पुर्तगाल वापिस लाए गए। वास्को डी गामा के शरीर को एक सोने और गहनों से सजाए गए ताबूत में विदिगुइरा शहर में फिर से दफनाया गया।

[Back cluster Contents ↑]

Related Posts