Swami vivekanand life story in hindi pdf

Swami Vivekananda Biography in Sanskrit PDF | स्वामी विवेकानन्द

Title : स्वामी विवेकानंद की जीवनी
File Size : 4.07 Fragment
Author : msih.in
Language : Hindi
Pages : 15
To read : Download PDF


प्रेरक अनुच्छेद :पवित्र हृदय से घृणा एकदम निकल जाती है, अतएव पवित्र हृदय प्रेम से एकदम लबालब भरा होता है। उच्च कोटि का पवित्रहृदय व्यक्ति किसी से केवल कारणवश प्रेम नहीं करता, अपितु उसके पास केवल प्रेम है ही इसलिए उसका स्वभाव ही प्रेम करना।

जब उसके हृदय में घृणा है ही नहीं, तो किसी के लिए उसका प्रयोग कैसे हो सकता है!

हां, किसी के दुस्स्वभाव से उसकी उपेक्षा कर देना अलग बात है।

जिसके पास रूपयों का विशाल कोष है, बेशुमार खजाना है, वह लोगों से कौड़ी-कौड़ी क्यों चाहेगा!

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इसी प्रकार जो निस्स्वार्थ और पवित्र हृदय होने से स्वयं प्रेम का अथाह सागर हो गया है और जो अपने प्रेम की भीख मांगेगा। क्या वह कभी शिकायत करेगा कि हमें लोग प्रेम नहीं दे रहे हैं!

जो सदैव दूसरों को आदर देता रहता है, वह क्या अपने आदर का भूखा होगा!

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हम स्वार्थ और अहंकार के कारण बड़े क्रूर हो गये हैं। हम दूसरे के दोषों और अपने गुणों को देखने के लिए हजारों आंखों वाले हो जाते हैं और दूसरे के गुणों एवं अपने दोषों को देखने की बात आये तो हमारे भीतर-बाहर की चारों आंखें फूट जाती हैं। ऐसी स्थिति में न समन्वय हो सकेगा न शांति।

दो भाई थे। ऊपर से घी का घड़ा उतारना था। बड़ा भाई ऊपर चढ़कर घी का घड़ा उतारा और नीचे खड़े छोटे भाई को पकड़ाया। घी का घड़ा दोनों के हाथों से गिरा और फूट गया। घी खराब हो गया। बड़ा भाई कहता "मुझसे गलती हुई। मैंने ठीक से पकड़ाने से पहले छोड़ दिया, इसलिए मेरी गलती है।" छोटा भाई कहता "भैया गलती मेरी है। मैंने ठीक से सम्भाला नहीं।"

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अब बताओं, झगड़ा कैसे होगा!

झगड़ा तब होता जब एक कहता "तू बड़ा मूर्ख है। तूने इतनी लापरवाही की और घड़ा नहीं सम्भला। घी खराब कर डाला।" दूसरा कहता "भूल आपने की, दोष मुझे लगाते हैं। आपकी ही गलती से घी खराब हुआ है।" परन्तु यहां तो दोनों अपने-अपने दोष देखते हैं और दूसरे में सद्गुण। फिर कौन झगड़ा करे!



अच्छाइयों को लेकर ही समन्वय हो सकता है, बुराइयों को लेकर कभी एकता नहीं हुई है। अतएव जितने व्यक्तियों से आपका सम्पर्क हो उनसे एकता बनाये रखने के लिए उनकी अच्छाइयों को देखना तथा उनके प्रति अगाध प्रेम का भाव रखना ही अत्यन्त श्रेयस्कर है।

अतएव आवश्यकता है अपने आपको संकुचित भावनाओं से ऊपर उठने की। हर व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने हृदय में प्रेम की भावना करे। वह प्रेम से भर जाए। मानव मात्र के लिए वह प्रेम से आप्लावित हो और जीव मात्र के लिए दया से पूर्ण!